खामोशिया भी बहुत कुछ कर जाती हैं
जिंदगी कभी ना कभी सँवर जाती हैं
कोई पहुँचता है झोपड़ी से चल के महल तक
तो कही महलों सी इमारत में सांसे खो जाती हैं
ये ज़िंदगी है इसका नाम ही गम-ऐ -हयात हैं
किसी को बनाकर तो
किसी को गिराकर छोड़ जाती हैं
कही आने का तो कही
जाने का फलसफा हैं चलता
किसी को थाल भर परोसकर
तो कही मुँह मोड़ जाती हैं।।
जिंदगी कभी ना कभी सँवर जाती हैं
कोई पहुँचता है झोपड़ी से चल के महल तक
तो कही महलों सी इमारत में सांसे खो जाती हैं
ये ज़िंदगी है इसका नाम ही गम-ऐ -हयात हैं
किसी को बनाकर तो
किसी को गिराकर छोड़ जाती हैं
कही आने का तो कही
जाने का फलसफा हैं चलता
किसी को थाल भर परोसकर
तो कही मुँह मोड़ जाती हैं।।
2nd line mast hai....jindagi waki kabhi na kabhi sudher hi jati hai:))
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